• ‘झाड़ियों एवं वनों की बहुलता’ के कारण इस राज्य का नाम झारखण्ड पड़ा है।
• विभिन्न कालों में झारखण्ड प्रदेश को विभिन्न नामों से जाना जाता था :-
काल नामकरण
ऐतरेय ब्राह्मण पुण्ड्र या पुण्ड
ऋगवेद कीकट प्रदेश
अथर्ववेद व्रात्य प्रदेश
वायु पुराण मुरण्ड
समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति मुरूण्ड
विष्णु पुराण मुण्ड
भागवत पुराण किक्कट प्रदेश
महाभारत ( दिग्विजय पर्व में ) पुण्डरीक / पशुभूमि / कर्क खण्ड / अर्क खण्ड
पूर्वमध्यकालीन संस्कृत साहित्य कलिंद देश
13वीं सदी के ताम्रपत्र में झारखण्ड
तारीख-ए-फिरोजशाही झारखण्ड
तारीख-ए-बंग्ला झारखण्ड
सियार-उल-मुतखरीन झारखण्ड
कबीर के दोहे में झारखण्ड
जायसी द्वारा (पद्मावत में ) झारखण्ड
अकबरनामा झारखण्ड
नरसिंहदेव द्वितीय के ताम्रपत्र में झारखण्ड
आइने-अकबरी कोकरा / खंकराह
कौटिल्य का अर्थशास्त्र कुकुट / कुकुटदेश
टॉलमी द्वारा मुण्डल
फह्यान द्वारा कुक्कुट लाड
ह्वेनसांग द्वारा की-लो-ना-सु-का-ला-ना / कर्ण-सुवर्ण
मुगल काल खुखरा / कुकरा / कोकराह
तुजुक -ए-जहाँगीरी खोखरा
ईस्ट इण्डिया कंपनी के शासनकाल में छोटानागपुर
• प्राचीन काल में गुप्त शासकों एवं गौड़ शासक शशांक ने झारखण्ड क्षेत्र में सर्वाधिक समय तक शासन किया।
• ह्वेनसांग ने राजमहल क्षेत्र के लिए ‘कि- चिंग-काई-लॉ’ तथा इसके पहाड़ी क्षेत्र के लिए ‘दामिन-ए-कोह’ शब्द का प्रयोग किया है।
• कैप्टन टैनर के सर्वेक्षण के आधार पर 1824 ई. में दामिन-ए-कोह की स्थापना हुयी थी।
• प्राचीन काल में संथाल परगना क्षेत्र को नरीखंड तथा बाद में कांकजोल नाम से संबोधित किया गया है।
• 1833 ई. में दक्षिण – पश्चिमी फ्रंटियर एजेंसी की स्थापना के बाद इस एजेंसी का मुख्यालय विल्किंसनगंज या किसुनपुर के नाम से जाना जाता था जिसे बाद में राँची के नाम से जाना गया।
झारखण्ड में आदिवासियों का प्रवेश
क्र.सं. जनजाति महत्वपूर्ण बातें
- असुर झारखण्ड की प्राचीनतम जनजाति (राँची, लोहरदगा, गुमला )
- बिरजिया, बिरहोर तथा खड़िया संभवतः कैमूर की पहाड़ियों से होकर छोटानागपुर में प्रवेश
- कोरवा
- मुण्डा, उराँव, हो मुण्डाओं ने नागवंश की स्थापना में योगदान दिया था । उराँव
झारखण्ड में राजमहल तथा पलामू नामक दो शाखाओं में बसे थे। - चेरो, खरवार, संथाल 1000 ई.पू. तक चेरो, खरवारों एवं संथालों को छोड़कर झारखण्ड में पायी
जाने वाली सभी जनजातियाँ छोटानागपुर क्षेत्र में बस चुकी थी।
पूर्व मध्यकाल में संथाल हजारीबाग में बसे और ब्रिटिश काल में संथालों
का विस्तार संथाल परगना क्षेत्र में हुआ।
• वैदिक साहित्य में झारखण्ड की जनजातियों के लिए असुर शब्द का प्रयोग किया गया है। वेदों में असुरों की वीरता और करतब का उल्लेख किया गया है।
• ऋगवेद् में असुरों को ‘लिंगपूजक’ या ‘शिशनों का देव’ कहा गया है।
• इतिहासकार बुकानन ने बनारस से लेकर वीरभूम तक के पठारी क्षेत्र को झारखण्ड के रूप में वर्णित किया है।
• महाभारत काल में झारखण्ड वृहद्रथवंशी सम्राट जरासध के अधिकार क्षेत्र में था ।
• जनजातियों की अधिकता के कारण झारखण्ड को ‘कर्कखण्ड’ भी कहा जाता है।
• झारखण्ड के छोटानागपुर क्षेत्र को ‘कर्ण सुवर्ण’ के नाम से भी संबोधित किया गया है।