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झारखण्ड के पर्व-त्योहार

सरहुल पर्व-त्योहार

• यह जनजातियो का सबसे बड़ा पर्व है

• अन्य नाम:-

• खद्दी (उराँव जनजाति)

• बा परब (संथाल जनजाति)

• जकोर ( खड़िया जनजाति)

• यह प्रकृति से संबंधित त्योहार है।

• यह चैत / चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।

• इस पर्व में साल के वृक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आदिवासी ऐसा मानते हैं कि साल के वृक्ष में उनके देवता बोंगा निवास करते हैं।

• यह फूलों का त्योहार है ।  यह पर्व बसंत के मौसम में मनाया जाता है। इस समय साल के वृक्षों पर नये फूल खिलते हैं।

• यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है-

पहला दिन  – मछली के अभिषेक किए हुए जल को घर में छिड़का जाता है।

• दूसरा दिन –  उपवास रखा जाता है तथा गांव का पुजारी गांव के हर घर की छत पर साल के  फूल रखता है।

• तीसरा दिन – पाहन (पुरोहित) द्वारा सरना ( पूजा स्थल) पर सरई के फूलों (सखुए

का कुंज) की पूजा की जाती है तथा पाहन उपवास रखता है।

साथ ही मुर्गी की बलि दी जाती है तथा चावल और बलि की मुर्गी का मांस मिलाकर सुड़ी नामक खिचड़ी बनायी जाती है, जिसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

• चौथा दिन – गिड़िवा नामक स्थान पर सरहुल फूल का विसर्जन कहलाता है। एक परंपरा के आधार पर इस पर्व के दौरान गाँव का पुजारी मिट्टी के तीन पात्र लेता है और उन्हें ताजे पानी से भरता है। अगले दिन प्रातः वह मिट्टी के तीनों पात्रों को देखता है। यदि पात्रों में पानी का स्तर घट गया है तो वह अकाल की भविष्यवाणी करता है और यदि पानी का स्तर सामान्य रहता है, तो इसे उत्तम वर्षा का संकेत माना जाता है।

• सरहुल की पूजा के दौरान ग्रामीणों द्वारा सरना ( पूजा स्थल) को घेरा जाता है।

मण्डा

• इसमें महादेव (शिव) की पूजा होती है।

• यह पर्व बैशाख माह के अक्षय तृतीया को आरंभ होता है।

• यह पर्व आदिवासी और सदान दोनों में प्रचलित है।

• इस पर्व में उपवास रखने वाले पुरूष – व्रती को भगता और महिला – व्रती को सोखताइन कहते हैं।

• झारखण्ड में महादेव (शिव) की यह सबसे कठोर पूजा है।

• इस पर्व के दौरान भोगताओं को रात में धूप – धवन की अग्नि – शिखाओं के ऊपर उल्टा लटकाकर झुलाया जाता है, जिसे धुवांसी कहा जाता है।

• इस पर्व में भोगताओं को दहकते हुए अंगारों पर चलना होता है, जिसे फूल -खूंदी कहा जाता है।

• इस पर्व के दौरान कहीं-कहीं लोहे से निर्मित अंकुश को रस्सी से बांधकर झुलाया जाता है तथा उससे भगता लोगों की पीठ पर छेद किया जाता है। इस दौरान भगता लोगों की माँ अथवा बहन भगवान शिव की अराधना करते रहती हैं।

करमा पर्व-त्योहार

• यह प्रकृति संबंधी त्योहार है।

• इस त्योहार का प्रमुख संदेश कर्म की जीवन में प्रधानता है।

• यह आदिवासी व सदानों में समान रूप से प्रचलित है।

• इस पर्व में भाई के जीवन की कामना हेतु बहन द्वारा उपवास रखा जाता है। यह पर्व हिन्दुओं के भईया दूज की ही भांति भाई-बहन के प्रेम का पर्व है।

• यह पर्व भाद्रपद ( भादो ) माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। ।

• इस त्योहार में नृत्य के मैदान (अखड़ा) में करम वृक्ष की दो डालियाँ गाड़ दी जाती है तथा पाहन द्वारा लोगों को करमा कथा ( करमा एवं धरमा नामक भाईयों की कथा) सुनायी जाती है।

• इस पर्व के दौरान रात भर नृत्य-गान का कार्यक्रम किया जाता है।

मुण्डा जनजाति में करमा की दो श्रेणियाँ हैं :-

राज करमा  – घर आंगन में की जाने वाली पारिवारिक पूजा

• देश करमा – अखरा में की जाने वाली सामूहिक पूजा

• मुण्डाओं में मान्यता है कि इस पर्व के दौरान करम गोसाई से मांगी गयी हर मन्नत पूरी होती है।

• मुण्डा जनजाति की कुँआरी लड़कियाँ इस पर्व में एक बालू भरी टोकरी में कुर्थी, जौ, गेहूँ, मकई, उड़द, चना तथा मटर सात प्रकार के अनाजों की ‘जावा’ उगाने की प्रथा का पालन करती हैं। इस टोकरी को पूजा स्थल में रखकर जवा का प्रसाद वितरित किया जाता है तथा अगले दिन सूर्योदय से पूर्व करम डाली को नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है।

सोहराई पर्व-त्योहार

• यह पर्व दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है।

• इसका संबंध जानवर धन से है।अतः इस पर्व में मवेशियों को नहलाकर उनकी पूजा की जाती है।

• पौष माह में फसल कट जाने के बाद यह पर्व मनाया जाता है।

• यह झारखण्ड में संथाल जनजाति का सबसे बड़ा पर्व है।

• पर्व को मनाने से पूर्व जनजाति समुदायों द्वारा अपने घरों की दीवारों पर पेंटिंग भी की जाती है। पेंटिंग हेतु कृत्रिम रंगों के स्थान पर प्राकृतिक पदार्थों (पत्तियाँ, चावल, कोयला आदि) का प्रयोग किया जाता है।

• यह पर्व पांच दिनों तक चलता है-

पहला दिन – ‘गोड टाण्डी’ (बथान) में जाहेर एरा का आह्वान किया जाता है

तथा रात में प्रत्येक गृहस्थ के युवक-युवतियाँ गो-पूजन करते हैं।

दूसरा दिन – गोहाल पूजा की जाती है तथा गोशाला को अल्पना द्वारा सजाकर गाय को नहलाकर उसके शरीर को रंगा जाता है। गाय के सींग पर तेल व सिंदूर लगाकर उसके गले में फूलों की माला पहनायी जाती है।

तीसरा दिन – पशुओं को धान की बाली एवं मालाओं से सजाकर खूँटा जाता

है जिसे ‘सण्टाऊ’ कहा जाता है।

चौथा दिन – युवक व युवतियाँ गांव से चावल, दाल, नमक व मसाला आदि मांगकर जमा करते हैं।

पांचवा दिन – गांव से एकत्रित चावल, दाल आदि से खिचड़ी बनाया जाता है जिसे गांव के लोग साथ में खाते हैं।

धान बुनी पर्व-त्योहार

• यह पर्व आदिवासी तथा सदान दोनों द्वारा मनाया जाता है।

• इस समय धान बुआई का प्रारंभ होता है।

• इस पर्व में हड़िया का तपान चढ़ाया जाता है तथा प्रसाद वितरित किया जाता है।

बहुरा पर्व-त्योहार

• इसे राइज बहरलक के नाम से भी जाना जाता है।

• यह पर्व भादो माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है।

• यह अच्छी वर्षा तथा संतान प्राप्ति हेतु महिलाओं द्वारा मनाया जाता है ।

कदलेटा पर्व-त्योहार

• यह पर्व भादो माह में करमा से पहले मनाया जाता है।

• यह मेढ़क भूत को शांत करने के लिए मनाया जाता है।

• इस पर्व के दौरान पाहन पूरे गाँव से चावल प्राप्त करके हड़िया उठाता है।

• इसमें अखरा में साल, भेलवा तथा केन्दु की डालियां रखकर पूजा की जाती है तथा मान्यता के अनुसार पूजा के बाद लोग इस डाल को अपने खेतों में गाड़ते हैं ताकि फसल को रोगमुक्त रखा जा सके।

• इस पर्व में मुर्गी की बलि दी जाती है जिसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

टुसू पर्व-त्योहार

• यह सूर्य पूजा से संबंधित त्योहार है तथा मकर सक्रांति के दिन मनाया जाता है।

• यह पर्व टुसू नाम की कन्या की स्मृति में मनाया जाता है।

• इस पर्व के अवसर पर पंचपरगना में टुसू मेला लगता है।

• इस पर्व के दौरान लड़कियों द्वारा रंगीन कागज से लकड़ी या बांस के एक फ्रेम को सजाया जाता है तथा इसे आस-पास के पहाड़ी क्षेत्र में प्रवाहित किसी नदी को भेंट कर दिया जाता है।

फगुआ पर्व-त्योहार

• यह फागुन पूर्णिमा को मनाया जाता है।

• यह होली के समरूप त्योहार है।

• इस पर्व के दौरान आदिवासी लोग पाहन के साथ मिलकर सेमल अथवा अरण्डी की डाली गाड़कर संवत् जलाते हैं तथा मुर्गे की बलि देकर हड़िया का तपान चढ़ाते हैं, जबकि गैर-आदिवासी लोग संवत् जलाते समय बलि नहीं देते हैं।

• इस पर्व के दूसरे दिन धुरखेल मनाया जाता है।

मुर्गा लड़ाई पर्व-त्योहार

• इसे पुरातन सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त है।

• इस खेल में लोग सट्टा लगाते हैं।

आषाढ़ी पूजा पर्व-त्योहार

• यह पर्व आदिवासी तथा सदान दोनों द्वारा मनाया जाता है।

• आषाढ़ माह में मनाये जाने वाले इस पर्व में घर-आंगन में बकरी की बलि दी जाती है तथा हड़िया का तपान चढ़ाया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि इस पर्व से गाँव में चेचक जैसी बीमारी का प्रकोप नहीं होता है।

रोग खेदना पर्व-त्योहार

• यह पर्व रोगों को गाँव से बाहर निकालने हेतु मनाया जाता है।

पर्व-त्योहार नवाखानी

• यह पर्व करमा पर्व के बाद मनाया जाता है।

• नवाखानी का तात्पर्य है नया अन्न ग्रहण करना । ‘

• नये अन्न को घर लाकर शुद्ध ओखली व मूसल से कूट कर चूड़ा बनाया जाता है जिसे देवताओं व पूर्वजों को अर्पित किया जाता है।

• पर्व के दौरान दही-चूड़ा का तपान चढ़ाया जाता है तथा घर आये अतिथियों के साथ दही-चूड़ा ग्रहण किया जाता है।

सूर्याही पूजा

• अगहन माह में आयोजित इस पर्व में सफेद मुर्गे की बलि दी जाती है एवं हड़िया का तपान चढ़ाया जाता है।

• इस पर्व को किसी टांड़ (एक प्रकार का ऊँचा स्थान ) पर मनाया जाता है।

• इस पर्व में केवल पुरुष भाग लेते हैं।

जितिया पर्व-त्योहार

• इस पर्व में माँ अपने पुत्र के दीर्घायु जीवन तथा समृद्धि के लिए व्रत रखती है।

चाण्डी पर्व पर्व-त्योहार

• यह पर्व उराँव जनजाति द्वारा मनाया जाता है।

• यह पर्व माघ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

• इस पर्व में महिलाएँ भाग नहीं लेती हैं तथा जिस परिवार में कोई महिला गर्भवती हो उस परिवार का पुरूष भी इस पर्व में भाग नहीं लेता है।

• इस पर्व में भाग लेने वाले पुरूष चाण्डी स्थल में देवी की पूजा करते हैं।

• इस पर्व में सफेद व लाल मुर्गा तथा सफेद बकरे की बलि दी जाती है।

देव उठान पर्व-त्योहार

• यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है।

• इस पर्व में देवों को जागृत किया जाता है।

इस पर्व के बाद ही विवाह हेतु कन्या अथवा वर देखने की प्रथा आरंभ की जाती है ।

भाई भीख पर्व-त्योहार

• यह पर्व बारह वर्ष में एक बार मनाया जाता है।

• इस पर्व में बहन अपने भाई के घर से भिक्षा मांगकर अनाज लाती है तथा एक निश्चित दिन निमंत्रण देकर उसे अपने घर पर भोजन कराती है।

बुरू पर्व

यह पर्व मुण्डा जनजाति द्वारा मनाया जाता है ।

• इस पर्व का मुख्य उद्देश्य वन्य जीवों तथा मानव का तालमेल स्थापित करना तथा प्राकृतिक प्रकोपों से समाज की रक्षा हेतु कामना करना है।

छठ

• यह झारखण्ड राज्य का अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है।

• छठ पर्व वर्ष में दो बार मार्च और नवंबर में मनाया जाता है।

• इस पर्व के दौरान सूर्य भगवान की पूजा करते हुए उन्हें अर्ध्य अर्पित किया जाता है।

• यह पर्व अस्त होते हुए सूर्य को प्रसन्न करने हेतु मनाया जाता है।

• इस पर्व के दौरान प्रसाद हेतु मिठाई (व्यंजन)  के रूप में ‘ठेकुआ’ का वितरण किया जाता है।

बंदना

• इस पर्व का आयोजन कार्तिक अमावस्या के दौरान सप्ताह भर किया जाता है। इस पर्व की शुरूआत ओहिरा गीत के साथ की जाती है।

• यह त्योहार मुख्यतः पालतू जानवरों से संबंधित है। इसमें कपड़ों तथा गहनों से जानवरों को सजाया जाता है। साथ ही प्राकृतिक रंगों द्वारा जानवरों पर लोक कलाकृति भी अंकित किया जाता है।

रोहिन / रोहिणी

• यह त्योहार झारखण्ड राज्य में कैलेंडर वर्ष का प्रथम त्योहार है।

• यह बीज बोने के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार के प्रारंभ के दिन से किसानों द्वारा खेतों में बीज बोने की शुरूआत की जाती है।

• इस त्योहार को मनाने के दौरान किसी प्रकार का नृत्य प्रदर्शन या लोकगीत गायन नहीं किया जाता है।

हेरो पर्व

• हेरो शब्द का अर्थ छींटना या बुआई करना होता है ।

• इस पर्व का आयोजन मुख्यतः हो जनजाति द्वारा माघे व बाहा पर्व के बाद किया जाता है।

• यह पर्व कोल्हान क्षेत्र में हो जनजाति द्वारा मनाया जाता है।

• यह पर्व खेतों में बोये गए बीज की सुरक्षा हेतु मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व का आयोजन नहीं किए जाने पर कृषि कार्य को नुकसान होता है।

जावा पर्व

• इस पर्व का आयोजन भादो माह में किया जाता है।

• यह पर्व अविवाहित आदिवासी युवतियों में प्रजनन क्षमता में वृद्धि तथा अच्छे वर हेतु मनाया जाता है। *

भगता पर्व

• यह पर्व बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु के मध्य मनाया जाता है।

• यह पर्व तमाड़ क्षेत्र में प्रचलित है।

• इस पर्व को सरना मंदिर में ‘बुढ़ा बाबा के पूजा’ के रूप में मनाया जाता है।

• इस दिन लोग उपवास रखते हैं तथा गांव के पुजारी को कंधे पर उठाकर सरना मंदिर ले जाते हैं।

सेंदरा पर्व

• सेंदरा उराँव जनजाति की संस्कृति एवं परंपरा से संबंधित है। *

• सेंदरा का शाब्दिक अर्थ ‘शिकार’ होता है।

• उराँव जनजाति में महिलाओं द्वारा शिकार खेलने की प्रथा को ‘मुक्का सेंदरा’ के नाम से जाना जाता है। इस पर्व के दौरान जनजातीय महिलाएँ पूरे दिन पुरूष के कपड़े पहनकर पशुओं का शिकार करती हैं।

• यह पर्व उराँवों की आत्मरक्षा, युद्ध विद्या, भोजन व अन्य जरूरतों की पूर्ति से संबंधित है । उराँव जनजाति के लोग प्रत्येक वर्ष वैशाख में सू सेंदरा, फागुन में फागु सेंदरा तथा वर्षा ऋतु के प्रारंभ होने पर जेठ शिकार करते हैं।

जनी शिकार

• इस पर्व के दौरान महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से पुरूषों का वेश धारण करके परंपरागत हथियार से जानवरों का शिकार किया जाता है। इस दौरान महिलाएँ बच्चों को बेतरा (बच्चों को पीठ पर बाँधने वाला एक कपड़ा) से अपनी पीठ पर बाँधकर शिकार के लिए निकलती हैं।

• शाम के समय किए गए शिकार को अखड़ा में पकाया जाता है तथा पाहन द्वारा सभी को पका हुआ मांस वितरित किया जाता है।

• यह भारत में केवल झारखण्ड राज्य में ही मनाया जाता है।

• यह पर्व 12 वर्षों के अंतराल पर मनाया जाता है।

देशाऊली

• यह 12 वर्ष में एक बार मनाया जाने वाला उत्सव है।

• इस त्योहार में भुंईहरदारी की ओर से मरांग बुरू देवता को काड़ा ( भैंसा ) की बलि दी जाती है तथा बलि को जमीन में गाड़ दिया जाता है।

माघे पर्व

• यह पर्व माघ माह में मनाया जाता है।

• इस पर्व के साथ ही कृषि वर्ष का अंत होता है तथा नया कृषि वर्ष प्रारंभ होता है। यह कृषि श्रमिकों (धांगर) की विदाई का पर्व है। इस पर्व के दौरान धांगरों को उनके पारिश्रमिक के भुगतान के साथ रोटी व पीठा खिलाकर विदा किया जाता है।

सावनी पूजा

• यह पूजा श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को की जाती है।

• इसमें बकरे की बलि देकर देवी पूजा की जाती है हड़िया का तपान चढ़ाया जाता है।

अन्य प्रमुख पर्व-त्योहार:- संथाल जनजाति

1. एरोक – आषाढ़ महीने में बीज बोते समय मनाया जाने वाला पर्व

2. हरियाड़ – धान में हरियाली आने पर अच्छी फसल के लिए सावन माह में मनाया जाने वाला पर्व

3. साकरात – घर-परिवार की कुशलता के लिए पूस माह में मनाया जाने वाला पर्व

4. बाहा – फागुन माह में शुद्ध जल से खेली जाने वाली होली

उराँव जनजाति

1. जतरा – जेठ, अगहन एवं कार्तिक माह में मनाया जाने वाला पर्व

खड़िया जनजाति

1. जंकोर पूजा – खड़िया जनजाति का वसंतोत्सव

2. पाटो सरना – वैशाख माह में मनाये जाने वाले इस पर्व में देवताओं के नाम पर भैंसा या भेड़ा तथा पांच मुर्गा की बलि दी जाती है। इस पूजा को ‘कालो’ नामक पुजारी संपन्न कराता है।

इस पूजा के दौरान सरना स्थल पर दूध उबाला जाता है तथा उसके गिरने की दिशा के आधार पर बारिश की भविष्यवाणी की जाती है।

3. जाडकोर पूजा – इस पूजा को भी ‘कालो’ नामक पुजारी संपन्न कराता है।यह पूजा मानव व पशुओं की रक्षा हेतु किया जाता है इस पूजा के दौरान कोई बलिष्ठ युवा ‘कालो’ को अपने कंधे पर बिठाकर घर – घर घुमाता है।

माल पहाड़िया

1. गांगी आड़या – भादो माह में नई फसल कटने पर मनाया जाने वाला पर्व

असुर

1. कुटसी – लोहा गलाने के उद्योग की उन्नति हेतु मनाया जाता है।

• मुक्का सेन्द्रा – इस त्योहार के दौरान जनजाति महिलाएँ पुरूष के कपड़े पहन कर दिन भर पशुओं का शिकार करती हैं।

• भलवा फारेख – यह पर्व कदलेटा के दो-तीन दिन बाद मनाया जाता है। इसे भाख काटेक भी कहा जाता है।

 


• ‘झाड़ियों एवं वनों की बहुलता’ के कारण इस राज्य का नाम झारखण्ड पड़ा है।
• विभिन्न कालों में झारखण्ड प्रदेश को विभिन्न नामों से जाना जाता था :-
काल नामकरण
ऐतरेय ब्राह्मण पुण्ड्र या पुण्ड
ऋगवेद कीकट प्रदेश
अथर्ववेद व्रात्य प्रदेश
वायु पुराण मुरण्ड
समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति मुरूण्ड
विष्णु पुराण मुण्ड
भागवत पुराण किक्कट प्रदेश
महाभारत ( दिग्विजय पर्व में ) पुण्डरीक / पशुभूमि / कर्क खण्ड / अर्क खण्ड
पूर्वमध्यकालीन संस्कृत साहित्य कलिंद देश
13वीं सदी के ताम्रपत्र में झारखण्ड
तारीख-ए-फिरोजशाही झारखण्ड
तारीख-ए-बंग्ला झारखण्ड
सियार-उल-मुतखरीन झारखण्ड
कबीर के दोहे में झारखण्ड
जायसी द्वारा (पद्मावत में ) झारखण्ड
अकबरनामा झारखण्ड
नरसिंहदेव द्वितीय के ताम्रपत्र में झारखण्ड
आइने-अकबरी कोकरा / खंकराह
कौटिल्य का अर्थशास्त्र कुकुट / कुकुटदेश
टॉलमी द्वारा मुण्डल
फह्यान द्वारा कुक्कुट लाड
ह्वेनसांग द्वारा की-लो-ना-सु-का-ला-ना / कर्ण-सुवर्ण
मुगल काल खुखरा / कुकरा / कोकराह
तुजुक -ए-जहाँगीरी खोखरा
ईस्ट इण्डिया कंपनी के शासनकाल में छोटानागपुर
• प्राचीन काल में गुप्त शासकों एवं गौड़ शासक शशांक ने झारखण्ड क्षेत्र में सर्वाधिक समय तक शासन किया।
• ह्वेनसांग ने राजमहल क्षेत्र के लिए ‘कि- चिंग-काई-लॉ’ तथा इसके पहाड़ी क्षेत्र के लिए ‘दामिन-ए-कोह’ शब्द का प्रयोग किया है।
• कैप्टन टैनर के सर्वेक्षण के आधार पर 1824 ई. में दामिन-ए-कोह की स्थापना हुयी थी।
• प्राचीन काल में संथाल परगना क्षेत्र को नरीखंड तथा बाद में कांकजोल नाम से संबोधित किया गया है।
• 1833 ई. में दक्षिण – पश्चिमी फ्रंटियर एजेंसी की स्थापना के बाद इस एजेंसी का मुख्यालय विल्किंसनगंज या किसुनपुर के नाम से जाना जाता था जिसे बाद में राँची के नाम से जाना गया।
झारखण्ड में आदिवासियों का प्रवेश
क्र.सं. जनजाति महत्वपूर्ण बातें
1. असुर झारखण्ड की प्राचीनतम जनजाति (राँची, लोहरदगा, गुमला )
2. बिरजिया, बिरहोर तथा खड़िया संभवतः कैमूर की पहाड़ियों से होकर छोटानागपुर में प्रवेश
3. कोरवा
4. मुण्डा, उराँव, हो मुण्डाओं ने नागवंश की स्थापना में योगदान दिया था । उराँव
झारखण्ड में राजमहल तथा पलामू नामक दो शाखाओं में बसे थे।
5. चेरो, खरवार, संथाल 1000 ई.पू. तक चेरो, खरवारों एवं संथालों को छोड़कर झारखण्ड में पायी
जाने वाली सभी जनजातियाँ छोटानागपुर क्षेत्र में बस चुकी थी।
पूर्व मध्यकाल में संथाल हजारीबाग में बसे और ब्रिटिश काल में संथालों
का विस्तार संथाल परगना क्षेत्र में हुआ।

• वैदिक साहित्य में झारखण्ड की जनजातियों के लिए असुर शब्द का प्रयोग किया गया है। वेदों में असुरों की वीरता और करतब का उल्लेख किया गया है।
• ऋगवेद् में असुरों को ‘लिंगपूजक’ या ‘शिशनों का देव’ कहा गया है।
• इतिहासकार बुकानन ने बनारस से लेकर वीरभूम तक के पठारी क्षेत्र को झारखण्ड के रूप में वर्णित किया है।
• महाभारत काल में झारखण्ड वृहद्रथवंशी सम्राट जरासध के अधिकार क्षेत्र में था ।
• जनजातियों की अधिकता के कारण झारखण्ड को ‘कर्कखण्ड’ भी कहा जाता है।
• झारखण्ड के छोटानागपुर क्षेत्र को ‘कर्ण सुवर्ण’ के नाम से भी संबोधित किया गया है।

Jharkhand gs set 15

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कोणार्क का 'काला पैगोडा' किस देवता को समर्पित है?
(a) जगन्नाथ
(b) शिव
(c) सूर्य

1. (d) महावीर

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2. कोणार्क, जिसमें हिंदू वास्तुकला के अद्भुत नमूनों वाला प्रसिद्ध 'सूर्य देवता का मंदिर' है, किस राज्य में है?
(a) ओडिशा
(b) गुजरात
(c) कर्नाटक
(d) मध्य प्रदेश 

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3. होय्सलेश्वारा का प्रसिद्ध मंदिर कहाँ स्थित है?
(a) तंजौर
(b) मैसूर
(c) मदुरै
(d) हैलेबिड्

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4.

दिलवाड़ा मंदिर कहाँ स्थित है?
(a) हम्पी
(b) माउंट आबू
(c) द्वारिका
(d) कर्नाटक

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5. तिरूपति मंदिर किस राज्य में स्थित है?
(a) तमिलनाडु
(b) आंध्र प्रदेश
(c) महाराष्ट्र
(d) कर्नाटक

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6. किस नगर में 'ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह' है?
(a) जयपुर
(b) इलाहाबाद
(c) जौनपुर
(d) अजमेर

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7. 'खजुराहो के मंदिर' किस राज्य में हैं?
(a) उत्तर प्रदेश
(b) मध्य प्रदेश
(c) छत्तीसगढ़
(d) ओडिशा

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8. 'ब्लैक पैगोडा' (Black Pagoda) के नाम से कौन-सा मंदिर प्रसिद्ध है?

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9. 'स्वामीनारायण मंदिर' (अक्षरधाम) कहाँ स्थित है?

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10. 'सप्तरथ मंदिर' कहाँ स्थित है?

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